

गुड़ी पड़वा
हिन्दु नववर्ष की शुरूवात, हर हिन्दु के लिये होता है ये दिन खास
प्रतिपदा तिथि-
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 21 मार्च, 10:55 pm
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 22 मार्च, 08:23 pm
चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया।
गुड़ी पड़वा का त्योहार 22 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। इस दिन को कर्नाटक में उगादि और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी के नाम से मनाया जाता है। कश्मीर में ‘नवरेह’, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा कहा जाता है। वहीं गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो का पर्व मनाते हैं। सिंधि समुदाय के लोग इस दिन चेती चंड का पर्व मनाते हैं।
गुड़ी पड़वा या नव संवत्सर के दिन प्रातः नित्य कर्म कर तेल का उबटन लगाकर स्नान आदि से शुद्ध एवं पवित्र होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर देश काल के उच्चारण के साथ पूजन करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा में, गुड़ी का अर्थ है विजय पताका, और पड़वा का अर्थ है प्रतिपदा।
इस त्योहार पर लोग अपने घरों को पताका, ध्वज और बंधनवार से सजाते हैं। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है।
गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से महाराष्ट्र में हिंदू नव वर्ष की शुरुआत या नए साल की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है।
पंचांग के अनुसार नए साल की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है और इस दिन इस पर्व को मनाने की परंपरा है। गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गोवा सहित दक्षिण भारतीय राज्यों में खुशी के साथ मनाया जाता है।
- सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने की ख़ुशी में लोगों ने घरों पर गुड़ी को लगाया था।
- कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं।
- यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है। इसे इन्द्र-ध्वज के नाम से भी जाना जाता है।
- वहीं पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने इसी दिन बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से छुटकारा दिलाया था। इस दिन को लोग विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। यही वजह है कि इस खुशी के मौके पर घरों के बाहर रंगोली बनाई हैं और विजय पताला लहराकर जश्न मनया जाता है।
- भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आने की याद में भी कुछ लोग गुड़ी पड़वा का पर्व मनाते हैं।
- माना जाता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है।
- गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहते हैं; अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ है–उलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
- किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं।
- हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं। ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीपावली को आधा मुहूर्त माना जाता है।
हिन्दु नववर्ष का महत्व
हिन्दू नववर्ष हजारों वर्षो से हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण दिनों में शामिल रहा है। हिन्दू धर्म में नववर्ष को नवीनताऔर नवाचार का प्रतीक माना गया है एवं इस अवसर पर पूजा-पाठ एवं विभिन प्रकार के शुभ कार्यो को करने की परंपरा रही है। हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है जिसकी शुरुआत उज्जैन के महान शासक विक्रमादित्य द्वारा शकों को पराजित करने के उपलक्ष में 58 ई. पू. (58 B.C) में की गयी थी।
वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक गणना पर आधारित है जहाँ नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में मनाया जाता है। चैत्र माह में प्रकृति में चारों ओर उत्साह एवं सौंदर्य प्रदर्शित होता है एवं बसंत ऋतु का आगमन होता है। हिन्दू नववर्ष के अवसर पर सम्पूर्ण प्रकृति ही नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार प्रतीत होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी हिन्दू नववर्ष को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। यह दिवस हिन्दू समुदाय में नवीन उत्साह का संचार करता है एवं नवीन वर्ष के अवसर विभिन प्रकार के नए संकल्प लिए जाते है। हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाने के पीछे ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, पौराणिक, प्राकृतिक एवं नैसर्गिक कारण कारण है।
चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की प्रितपदा तिथि को नववर्ष मनाने के पीछे महत्वपूर्ण बिन्दु निम्न प्रकार है-
ऐतिहासिक कारण
हिन्दू नववर्ष को विक्रम सम्वत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है। इस कैलेंडर की शुरुआत भारत के महान सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा शकों को पराजित करने एवं राज्याभिषेक के अवसर पर 58 ई.पू. में की गयी थी। प्रतिवर्ष विक्रम सम्वत के आधार पर हिन्दू नववर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।
पौराणिक कारण
ब्रह्मांड निर्माण का दिवस- पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नववर्ष के अवसर पर ही ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यही कारण है की इस दिवस को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू नववर्ष के प्रारम्भ होने के पौराणिक कारणों में विभिन तथ्यों को माना जाता है जिनमे में कुछ कारण निम्न है-
- माना जाता है की इस दिन प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था।
- इस दिवस के अवसर पर ही प्रभु राम द्वारा बाली का वध किया गया था।
- धर्मराज युधिष्ठर का राज्याभिषेक दिवस भी हिन्दू नववर्ष के दिन माना जाता है।
- लंकापति रावण के विजय के अवसर पर इस दिवस अयोध्यावासियों ने अपने घरो पर भगवान राम के सम्मान में विजय पताका फहराई थी।
- नवरात्र की शुरुआत भी नववर्ष से मानी जाती है।
आध्यात्मिक कारण
हिन्दू नववर्ष के अवसर पर जीवन में नवीनता एवं उत्साह की शुरुआत मानी जाती है। भारतीय अध्यात्म में नवीनता एवं बदलाव को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग माना गया है ऐसे में नववर्ष को जीवन में नवीन शुरुआत के आरम्भ के रूप में भी माना जाता है।
प्राकृतिक कारण
हिन्दू नववर्ष हमारे देश में बसंत ऋतु के आगमन का अवसर होता है ऐसे में प्रकृति में चारों ओर हरियाली छायी रहती है। शरद ऋतु के पतझड़ के बाद वृक्षों पर नयी कोपलें जीवन की नवीनता का संदेश देती है। चारों ओर नए फूल, फल एवं पत्तियाँ मानों नए साल के स्वागत का संदेश लेकर आयी हुयी प्रतीत होती है।
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